अम्बेडकरनगर। लोकसभा चुनाव को लेकर जिले में सियासत की सरगर्मियां बढ़ गयी हैं।कभी बसपा का गढ़ रहा अम्बेडकरनगर लोकसभा सीट आज सपा और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गयी है।जातीय समीकरणों के मकड़जाल में उलझी इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी के सामने जहां इतिहास बचाने की चुनौती है वहीं सपा प्रत्याशी के सामने इतिहास बनाने की चुनौती है।इस सीट पर दो सियासी परिवारों का रसूख दांव पर लगा है।
अम्बेडकरनगर लोकसभा सीट 2009 के आम चुनाव में पहली बार सामान्य सीट घोषित हुई।वैसे तो अम्बेडकरनगर सीट पर दलित ,मुस्लिम और पिछड़े वोटों की बाहुल्यता है लेकिन तीन चुनावों में कभी भी इस समाज के नेताओं को जीत नही मिली। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्यासी राकेश पांडे ने भाजपा के फायर ब्रांड नेता विनय कटियार को हराया था।राकेश पांडे वर्तमान में भाजपा प्रत्याशी रितेश पांडे के पिता हैं और वो सपा से विधायक हैं।2014 के चुनाव में भाजपा के हरिओम पांडे ने सपा उम्मीदवार राम मूर्ति वर्मा को हराया था।2019 के चुनाव में रितेश पांडे ने भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा को शिकस्त दी थी।
2024 के लोकसभा चुनाव में रितेश पांडे बसपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए और चुनावी मैदान में हैं।सपा ने छ बार के विधायक और पिछड़ों के नेता के रूप में मशहूर लालजी वर्मा को प्रत्यशी बना कर चुनावी खेल जातीय आंकड़ो पर ला दिया है।अम्बेडकरनगर लोकसभा सीट पर तकरीबन 18 लाख 50 हजार से अधिक मतदाता हैं।जातीय आंकड़ों की बात करे तो इस सीट पर तकरीबन 4 लाख दलित मतदाता,तीन लाख 70 हजार मुस्लिम,1 लाख 78 हजार से अधिक कुर्मी,1लाख 70 हजार यादव,लगभग 1 लाख 35 ब्राह्मण ,एक लाख के करीब ठाकुर मतदाता हैं ,शेष अन्य जाति के मतदाता हैं।इस चुनाव में ठाकुर मतदाताओं की चुप्पी भाजपा के लिए मुसीबत बन गयी है।अब तक इस सीट पर सिर्फ ब्राह्मण प्रत्याशी का ही कब्जा रहा है ऐसे में भाजपा प्रत्याशी रितेश पांडे के सामने जहां इतिहास बचाने की चुनौती है वहीं सपा प्रत्याशी लालजी वर्मा के इतिहास बनाने की चुनौती है।